”गुजरात के ऊना में दलितों को सरेआम पीट-पीटकर उनकी खाल उधेड़ दी गई, हरियाणा के दलितों ने अपने साथ हो रही नाइंसाफियों के लिए धरना दिया, वजीर-ए-आला खट्टर को मेमोरण्डम देने की कोशिश की तो उनपर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दर्ज कर दिया गया, सहारनपुर में बीजेपी के ब्राहमण लोक सभा मेम्बर ने हिंसा फैलाने की साजिश की लेकिन विलेन दलित बना दिए गए भीम आर्मी के लीडर चन्द्रशेखर आजाद जेल में हैं रोहित वेमूला मामले समेत दलितो पर होने वाले मजालिम पर रामनाथ कोविद ने कभी जुबान नहीं खोेली यही उनकी सबसे बड़ी अहलियत (योग्यता) है?“
”सत्रह अपोजीशन पार्टियों ने इत्तेफाक राय से साबिक लोक सभा स्पीकर मशहूर दलित लीडर मीरा कुमार को कोविद के खिलाफ मैदान में उतार कर नितीश कुमार को एक बड़ी सियासी परेशानी में डाल दिया। मीराकुमार रिटायर्ड आईएफएस अफसर हैं। मरकज में वजीर और लोक सभा की पहली खातून स्पीकर रही हैं। वह पांच बार लोक सभा मेम्बर रही हैं। जबकि रामनाथ कोविद कभी कोई एलक्शन नहीं जीत सके। लोक सभा असम्बली दोनों के लिए लड़े और बुरी तरह हार गए।“
”सदर जम्हूरिया की हैसियत रबर स्टैम्प की होती है इसलिए नरेन्द्र मोदी ने रामनाथ कोविद को सजावटी ओहदे पर पहुचाने का फैसला कर लिया, उनकी पार्टी और पूरा आरएसएस परिवार मुल्क के दलितों पर एहसान लादता फिर रहा है। मोदी किसी दलित को डिफेंस, होम, एनर्जी, रेलवे, इण्डस्ट्रीज, कामर्स और फारेन एफेयर्स जैसी वजारतों में कैबिनेट मिनिस्टर नहीं बनाएंगे क्योंकि इन वजारतों में मिनिस्टर बनकर कोई भी लीडर अपनी बिरादरी को फायदा पहुचा सकता है।“
नई दिल्ली! सवा सौ करोड़ के मुल्क की बदकिस्मती ही कही जाएगी कि अब इस मुल्क के सबसे बड़े संवैधानिक ओहदे पर बैठने यानी राष्ट्रपति बनने की अहलियत उसकी जात को तस्लीम किया गया है। नरेन्द्र मोदी की पसंद के उम्मीदवार रामनाथ कोविद का राष्ट्रपति बनना यकीनी है उनका एलक्शन तो महज रस्म अदाएगी है। इस ओहदे पर पहुचने के लिए रामनाथ कोविंद में सबसे बड़ी खूबी यही बताई गई है कि उनका ताल्लुक दलित तबके से है। इसके अलावा उनकी दूसरी अहलियत यह है कि वह उत्तर प्रदेश के साबिक वजीर-ए-आला और अब राजस्थान के गवर्नर कल्याण सिंह और साबिक वजीर-ए-आजम अटल बिहारी वाजपेयी के ‘नजदीकी सेवक’ रहे हैं। इन खूबियों के अलावा उनकी सबसे बडी खूबी यह है कि उन्होने अपने पूरे सियासी कैरियर में दलितों पर होने वाले मजालिम के खिलाफ कभी आवाज नहीं उठाई। रामनाथ कोविद को अगला राष्ट्रपति बनाने के मोदी के फैसले पर पूरा आरएसएस परिवार मुल्क के दलितों पर एहसान लाद रहा है कि हमारे लीडर मोदी ने मामूली घर में पैदा हुए एक दलित को राष्ट्रपति के ओहदे तक पहुचाने का काम किया है। इस किस्म का प्रोपगण्डा करते वक्त मोदी भक्त यह भूल जाते हैं कि कांगे्रस पहले ही के आर नारायणन और ज्ञानी जैल सिंह को इस ओहदे तक पहुचा चुकी है। दोनों को सदर जम्हूरिया बनाते वक्त कांगे्रस लीडरान या आम कांग्रेसी लीडरान ने कभी यह दावा नहीं किया था कि दलित होने की वजह से उन्हें इस ओहदे तक पहुचाया गया है। नरेन्द्र मोदी के गुजरात के ऊना में चार दलितों को सड़क पर खड़ा करके इतना पीटा गया कि उनकी पीठ की खाल तक उधड़ गई थी। मुजरिमीन के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई। हरियाणा में बीजेपी की खट्टर सरकार के दौरान रोजाना किसी न किसी गांव के दलितों पर वहशियाना जुल्म ढाए जा रहे हैं। जालिमों के खिलाफ कोई सख्त कानूनी कार्रवाई नहीं हुई। ताजा मामला यह है कि कर्नाल के गांव में दलित राजपूत टकराव में गुजिश्ता मार्च में एक राजपूत की मौत के बाद पुलिस वालों ने जिन चार दलितों को गिरफ्तार करके जेल भेजा वह बेगुनाह बताए गए। दलितों ने उनपर दर्ज मुकदमा वापस लेने और अस्ल मुल्जिमान को गिरफ्तार किए जाने का मतालबे पर पांच दिनों तक द्दरना दिया और 24 अप्रैल को हरियाणा के चीफ मिनिस्टर मनोहर लाल खट्टर को मेमोरण्डम देेने की कोशिश की तो कुरूक्षेत्र युनिवर्सिटी के दो होनहार तलबा समेत पन्द्रह दलितों के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर दिया गया। वकीलों और समाजी कारकुनान की एक टीम ने जब एफआईआर की कापी मांगी तो सीनियर पुलिस अफसरान ने यह कहकर रिपोर्ट की कापी दिलाने से इंकार कर दिया कि यह देश के तहफ्फुज (सुरक्षा) से जुड़ा मामला है। इसलिए रिपोर्ट की कापी नहीं दी जा सकती। सहारनपुर मे बीजेपी के ब्राहमण लोक सभा मेम्बर राघव लखनपाल शर्मा ने दंगा कराने की साजिश रची, शब्बीरपुर गांव के दलितों पर ठाकुरों ने हमला करके उनके पचासों घर जला दिए, तलवारों से हमले में गाय समेत दीगर मवेशियों तक को नहीं बख्शा। इसके बावजूद सहारनपुर की हिंसा के अस्ल साजिशी मुल्जिम राघव लखनपाल आजाद घूम रहे हैं और दलितों पर हुए मजालिम के खिलाफ आवाज उठाने वाले भीम आर्मी के लीडर चन्द्रशेखर आजाद रावण पर पूरे हंगामों की जिम्मेदारी डाल कर उन्हें और पचासों दलितों को जेल मंेे डाल दिया गया। हैदराबाद युनिवर्सिटी के दलित तालिब इल्म रोहित वेमूला की खुदकुशी का मामला महीनों तक अखबारों में छाया रहा। इन तमाम वाक्यात और दलित समाज पर हुए मजालिम के खिलाफ रामनाथ कोविद की जुबान से एक लफ्ज नहीं निकला। शायद इस लिए कि उन्हें बिहार के गवर्नर का ओहदा देकर उनके दलित जज्बात और दलितों के लिए बोलने की ताकत ढाई-तीन साल पहले ही खरीदी जा चुकी थी। बीजेपी ने उन्हें गवर्नर बनाकर उनपर जो एहसान किया था उस एहसान के मुकाबले मुल्क भर में दलितों पर हो रहे मजालिम की शायद कोई अहमियत उनकी नजर में नहीं है।
वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी खुद ही कह चुके हैं कि वह गुजराती हैं मुनाफे की तिजारत करने की अहलियत गुजरातियों में कूट-कूट कर भरी होती है। राष्ट्रपति के ओहदे पर एक दलित को लाने की भी उन्होनेे एक तिजारत ही की है। यह समझकर कि रामनाथ कोविंद को मुल्क का सदर जम्हूरिया बनाकर वह 2019 के लोक सभा एलक्शन में दलितों के वोट एक मुश्त अपनी तरफ खींच लेंगे। उन्हें शायद इस व्यापार में मुनाफा नहीं होने वाला क्यांेकि अब मुल्क के दलितों में भी बेदारी (जागरूकता) आ चुकी है। दलित भी समझ रहे हैं कि सदर जम्हूरिया की हैसियत रबर स्टैम्प से ज्यादा कुछ नहीं होती है। यह तो बस एक सजावटी ओहदा है। अगर नरेन्द्र मोदी को दलितों से इतनी ही मोहब्बत और हमदर्दी होती तो वह अपनी कैबिनेट में कम से कम पांच दलितों को अहम और बड़ी वजारतों के वजीर बनाते ठीक उस तरह जैसे कांग्रेस ने जगजीवन राम को डिफेंस मिनिस्टर बनाया था और चार साल कब्ल तक यूपीए सरकार में सुशील कुमार शिन्दे को मुल्क का होम मिनिस्टर बनाया गया था। उनके अलावा कुमारी शैलजा , मुकुल वासनिक और मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे कम से कम आधा दर्जन दलित वजीर बड़ी-बड़ी वजारतों में बिठाए गए थे। शिन्दे को कांगे्रस ने महाराष्ट्र का चीफ मिनिस्टर भी बनाया था। यह वजारते उन्हें इसीलिए दी गई थीं कि वह अपनी बिरादरी के लोगों का कुछ भला कर सके। नरेन्द्र मोदी की कैबिनेट मंे एक दलित थावर चन्द गहलौत हैं वह भी सोशल जस्टिस के वजीर हैं। मोदी को डिफेंस मिनिस्टर बनाने के लिए कोई मुनासिब लीडर नहीं मिल रहा है फिर भी वह किसी दलित को डिफेंस, होम, फाइनेंस, पावर, कोल, रेलवे और फारेन एफेयर्स जैसी वजारतों मे किसी दलित को नहीं आने देंगे ताकि वह अपनी बिरादरी के लोगों का कुछ भला न कर सके। सदर जम्हूरिया (राष्ट्रपति) बन कर तो रामनाथ कोविंद बस सजावटी हैसियत के रबर स्टैम्प बन जाएंगे इसीलिए मोदी के दिल मंे उनके लिए ही सारी मोहब्बतें जाग गई।
कांग्रेस की कयादत में सत्रह अपोजीशन पार्टियों ने 22 जून को मीटिंग करके साबिक मरकजी वजीर और पहली खातून लोक सभा स्पीकर रही रिटायर्ड आईएफएस मीरा कुमार को इत्तेफाक राय से अपना उम्मीदवार बनाने का एलान किया। वह पांच बार जीतकर लोक सभा मेम्बर रहीं है। अगर मीरा कुमार और रामनाथ कोविद में मुकाबला किया जाए तो मीरा कुमार के सामने कोविद कहीं नहीं ठहरते, मीरा कुमार उनके मुकाबले हजार गुना ज्यादा अहल (योग्य) है। लेकिन उनका मुकाबला महज रस्मी होगा, उनके जीतने का कोई सवाल नहीं है वजह यह है कि बीजेपी के अपने वोटों के अलावा एनडीए के बाहर की टीआरएस और आल इंडिया अन्ना डीएमके, जैसी पार्टियों की हिमायत उन्हें पहले ही मिल गई थी। सबसे ज्यादा चैकाने वाला फैसला नितीश कुमार का रहा, उन्होने अपोजीशन पार्टियों की मीटिंग से एक दिन पहले ही 21 जून को अपनी पार्टी की मीटिंग करके बीजेपी उम्मीदवार रामनाथ कोविद की हिमायत का एलान कर दिया। अपोजीशन पार्टियों को कमजोर करने का काम नितीश कुमार पहले भी कई बार कर चुके हैं। बिहार सरकार में शामिल नितीश के मुकाबले ज्यादा मेम्बरान असम्बली वाले राष्ट्रीय जनता दल के सदर लालू यादव ने सोनिया गांधी की उम्मीदवार मीरा कुमार के साथ ही रहने का फैसला किया। शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे ने हमेशा की तरह इस बार भी पहले तो खूब ड्रामा किया और कहा कि महज दलित होने की बुनियाद पर वह बीजेपी उम्मीदवार कोविद की हिमायत नहीं करेंगे। लेकिन बाद में उन्होने भी कोविद की हिमायत का एलान कर दिया। नितीश कुमार ने जल्दबाजी में मोदी के उम्मीदवार की हिमायत तो कर दी लेकिन अपोजीशन पार्टियों की जानिब से मीरा कुमार को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद उनकेे लिए एक नई सियासी परेशानी पैदा हो गई है क्योंकि मीरा कुमार न सिर्फ बिहार की रहने वाली हैं बल्कि मशहूर दलित लीडर रहे बाबू जगजीवन राम की बेटी हैं। मीरा कुमार के नाम का फैसला होने के बाद आरजेडी सदर लालू यादव ने कहा कि वह पटना वापस जाकर नितीश कुमार से अपने फैसले पर नजरसानी (पुनर्विचार) करने के लिए कहंेगे।
रामनाथ कोविद कभी भी अपनी दलित बिरादरी में मकबूल (लोकप्रिय) चेहरा नहीं रहे यही वजह है कि बीजेपी के टिकट पर वह 2004 में घाटमपुर रिजर्व सीट से एलक्शन लडे और 43 हजार से ज्यादा के मार्जिन से हार गए। 2007 में बीजेपी ने उन्हें भोगनीपुर असम्बली हलके से फिर मैदान में उतारा तो वह तीसरे नम्बर पर आए। अपने गांव और बिरादरी के लिए उन्होने कभी कोई काम नहीं किया। राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद बीजेपी के आईटी सेल ने उनकी तारीफों के जो पुल बांधे उसमें यह भी कहा गया कि कानपुर देहात के अपने गांव में उनके पास सिर्फ दो कमरों का एक मकान था जिसे उन्होने बारात घर के लिए तोहफे में दे दिया था। बीजेपी के दीगर प्रोपगण्डो की तरह यह बात भी झूटी साबित हुई पता चला कि जिस घर को उन्होने बारात घर मंे तब्दील किया वह उनका नहीं उनके भाई का था, जिस पर उन्होने दबाव डालकर जबरदस्ती कब्जा कर लिया था। राज्य सभा मेम्बर के फण्ड से उसकी मरम्मत कराई लेकिन आज तक उसमें दलितों की कोई भी बारत नहीं ठहरी। 1994 से वह बारह साल तक राज्य सभा मेम्बर रहे इस दौरान एमपी फण्ड का सारा पैसा उन्होने आरएसएस से मुताल्लिक तंजीमों (संगठनों) पर ही खर्च किया। कभी दलितों के मफाद में एक पैसा नहीं लगाया।